कमलनाथ सरकार हुई बेशर्म

महिला अतिथिविद्वानों का मुण्डन प्रदेश सरकार की बड़ी बेशर्मी


भोपाल।। एक नारी की सर्वाधिक कीमती पूंजी एवं उसका प्रिय श्रृंगार नारी के केश माने जाते हैं। किन्तु प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने महिलाओं को आज उस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ पर महिलाएं अपने केशत्यागने पर मजबूर हो रहीं है। उक्त वक्तव्य अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजक डॉ देवराज सिंह ने मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा। विदित हो कि अभी कुछ दिनों पूर्व छिन्दवाड़ा की अतिथिविद्वान डॉ शाहीन खान ने कमलनाथ सरकार द्वारा नियमितीकरण में किये जा रहे अनावश्यक विलंब के विरोध में अपने केश त्याग कर अपना मुंडन करवा लिया और सरकार और उसके नुमाईंदे बेशर्म बने हुए है।


कांग्रेस सरकार द्वारा कोई संज्ञान न लिए जाने के विरोध में आज एक अन्य महिला अतिथिविद्वान  लक्सरी दास ने कांग्रेस सरकार द्वारा नियमितीकरण न किये जाने बल्कि लगभग 2700 अतिथिविद्वानों को फालेन आउट करके बेरोजगार कर दिए जाने के विरोध में अपने केशत्याग दिए। अतिथिविद्वान लक्सरी दास शासकीय महाविद्यालय बड़नगर जिला उज्जैन में पदस्थ हैं। 


नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजक डॉ सुरजीत भदौरिया के अनुसार मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार अपनी नीतियों से अतिथिविद्वानों पर इतना अत्याचार कर रही है कि आज महिलाएं अपने समतां और श्रृंगार के प्रतीक अपने केश तक त्यागने पर मजबूर हो रही है। आज अतिथिविद्वान ग्रंथपाल लक्सरी दास ने अपने केशत्याग कर सरकार की विश्वसनीयता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। 84 दिनों से लगातार चल रहे आंदोलन के बावजूद सरकार अपनी शीत निद्रा से जाग नही रही है।


मंत्री जीतू ने नियमितीकरण की ज़िम्मेदारी डाली कर्मचारी आयोग पर

अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय के अनुसार अब तक कई अतिथिविद्वान अनिश्चित भविष्य और आर्थिक तंगी के कारण काल के गाल में समा चुके हैं जबकि विभागीय मंत्री जीतू पटवारी नियमितीकरण की अपनी ज़िम्मेदारी को कर्मचारी आयोग के पल्ले डाल कर समस्त ज़िम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं। जबकि विभागीय मंत्री होने के नाते वचनपत्र के महत्वपूर्ण बिंदु क्रमांक 17.22 जिसमे कांग्रेस पार्टी ने अतिथिविद्वानों को नियमितीकरण का वचन दिया था, उसे पूरा करवाने की ज़िम्मेदारी उनकी बनती है। मंत्रीजी के आज के ताज़ा बयान से यह पता चलता है कि इतनी पीड़ा झेलने के बाद भी अतिथिविद्वानों के शारीरिक और मानसिक कष्ट उनको नही दिखाई पड़ रहे हैं। वे आज भी केवल भ्रामक और चॉइस फिलिंग की अनावश्यक भाषणबाजी करके नियमितीकरण जैसे महत्वपूर्ण और चर्चित मुद्दे से मीडिया और अतिथिविद्वानों का ध्यान हटाना चाहते हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

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